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Ekadasi, the eleventh day of each lunar fortnight, is celebrated with reverence across Vaishnava traditions. Known as a day for spiritual purification, it emphasizes self-discipline and focuses on connecting deeply with the Supreme Lord, Krishna, through fasting, prayer, and devotion. The scriptures praise Ekadasi as a unique opportunity to advance spiritually by subduing material indulgences and surrendering to the divine.
Srila Gurudev often emphasized, “Ekadasi is a day for intense devotion. It is the day when you renounce material cravings and make your heart a temple where the Lord resides. On this day, every act of devotion brings infinite blessings.”
Scriptural Origins of Ekadasi
The Padma Purana recounts the origin of Ekadasi as a divine gift from the Supreme Lord to humanity. When the evils of Kali Yuga began to overshadow virtue, Lord Krishna created Ekadasi Devi to aid devotees in overcoming material influences and drawing closer to Him. Ekadasi Devi promised Krishna, “Anyone who observes this day with sincere devotion will be freed from the impurities of sin and find refuge in Your lotus feet.”
The Padma Purana (Uttara Khanda, 53.13) declares:
Ekādaśī vrataṁ nāma kṛṣṇaṁ prāptasya kāraṇam |
anena tu bhaved bhaktaḥ sarva pāpa vimuktaye ||
“Observing Ekadasi with devotion brings one closer to Krishna and helps remove all sins.”
Teachings of Lord Chaitanya on Ekadasi
Lord Chaitanya Mahaprabhu, who emphasized the essence of Bhakti Yoga, encouraged his followers to observe Ekadasi diligently, stating that it enhances one’s receptivity to Krishna’s mercy. He taught that Ekadasi is a blessed day to chant the Lord’s holy names and seek forgiveness. According to Srila Gurudev, “Mahaprabhu showed by His own example that Ekadasi is a day to deepen our love and devotion through harinam, the chanting of the holy names. This day’s observance has the power to transform the heart.”
The Glories of Ekadasi in Scripture
The Bhavishya Purana highlights the extraordinary results of observing Ekadasi:
sarva tīrtheṣu yat puṇyaṁ sarva yajñeṣu yat phalam |
tat phalaṁ jāyate nūnaṁ parvaṇāṁ śravaṇena ca ||
“The merit obtained by visiting all holy places and performing all sacrifices can be attained by observing Ekadasi.”
Similarly, in the Skanda Purana, it is said:
Ekādaśī vrataṁ puṇyaṁ pāpaghnaṁ sarvakāmadam |
sarva tīrtha phalaṁ tasya dadāti vṛṣṇiyottama ||
“Ekadasi brings the piety of visiting all holy places, grants freedom from sins, and fulfills all desires.”
Srila Gurudev often reminded us that Ekadasi is not merely a ritual but a divine opportunity: “The Lord has blessed us with Ekadasi so that, twice a month, we can pause our worldly attachments and remember our eternal service to Him. It is a day when every breath and every thought should be filled with Krishna.”
Benefits of Observing Ekadasi
- Spiritual Cleansing: Fasting and devotion cleanse the heart, reducing material desires.
- Divine Blessings: Observing Ekadasi brings divine favor, elevating one’s spiritual standing and granting mercy from the Lord.
- Alignment with Dharma: Ekadasi helps devotees focus on spiritual activities, fostering detachment from material concerns.
How to Observe Ekadasi
Fasting is integral to Ekadasi observance, traditionally involving abstinence from grains and in some cases, complete fasting. This fast symbolizes humility and surrender, bringing one closer to the divine. Chanting the holy names, reading scriptures, and spending the day in prayer are central to Ekadasi.
Srila Gurudev taught, “The true fast on Ekadasi is abstaining from negative thoughts and selfish desires. Feed your soul with devotion, for the Lord is pleased not just by your abstinence from food, but by the purity of your heart.”
The Ultimate Goal of Ekadasi
By sincerely observing Ekadasi, devotees awaken divine love and deepen their attachment to Krishna. As the Padma Purana states:
Srila Gurudev would say, “Ekadasi is the doorway to eternal service. On this day, we prepare ourselves to serve in the spiritual realm, where Krishna and Radha reside. It is a sacred chance to deepen our devotion and embrace the Lord in the heart.” Through these practices, Ekadasi becomes a pathway to divine bliss, guiding each soul closer to eternal service at Krishna’s lotus feet.
Extracted and Compiled from Hindi Zoom Lecture on 28 October 2024 by Srila Bhakti Bibudha Bodhayan Goswami Maharaj
For the Recording –
एकादशी: एक पवित्र आध्यात्मिक साधना का दिन
प्रत्येक पक्ष के ग्यारहवें दिन को एकादशी के रूप में मनाया जाता है, और यह दिन वैष्णव परंपराओं में अत्यधिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। एकादशी को आत्म-शुद्धि का दिन माना जाता है, जिसमें आत्म-अनुशासन, उपवास, प्रार्थना और भक्ति के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के साथ गहरे संबंध को मजबूत करने पर जोर दिया जाता है। शास्त्र एकादशी को भौतिक लालसाओं को नियंत्रित करने और परमात्मा की शरण में जाने के अनूठे अवसर के रूप में प्रशंसा करते हैं।
श्रील गुरुदेव अक्सर इस बात पर जोर देते हैं, “एकादशी भक्ति में गहनता का दिन है। यह वह दिन है जब आप भौतिक इच्छाओं का त्याग करते हैं और अपने हृदय को एक मंदिर बनाते हैं जहाँ भगवान निवास करते हैं। इस दिन भक्ति का प्रत्येक कार्य अनंत आशीर्वाद लाता है।”
एकादशी की शास्त्रीय उत्पत्ति
पद्म पुराण में एकादशी का उद्गम इस प्रकार बताया गया है कि यह भगवान द्वारा मानवता को दी गई एक दिव्य भेंट है। जब कलियुग की बुराइयों ने धर्म को ढकना शुरू किया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी देवी को उत्पन्न किया ताकि भक्त भौतिक प्रभावों पर विजय प्राप्त कर सकें और उनके करीब आ सकें। एकादशी देवी ने श्रीकृष्ण से वादा किया, “जो कोई भी इस दिन को सच्ची भक्ति के साथ मनाएगा, वह पापों से मुक्त होकर आपके चरणों की शरण पाएगा।”
पद्म पुराण (उत्तर खंड, 53.13) में इसका उल्लेख है:
“एकादशी व्रतं नाम कृष्णं प्राप्तस्य कारणम्।
अनेन तु भवेद भक्तः सर्व पाप विमुक्तये।।”
“एकादशी का व्रत भक्ति के साथ पालन करने से व्यक्ति भगवान श्रीकृष्ण के करीब आता है और सभी पापों से मुक्त हो जाता है।”
एकादशी पर श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएँ
श्री चैतन्य महाप्रभु, जिन्होंने भक्ति योग के सार पर जोर दिया, अपने अनुयायियों को एकादशी का पालन गंभीरता से करने के लिए प्रेरित करते थे, यह बताते हुए कि इससे भगवान श्रीकृष्ण की कृपा के प्रति व्यक्ति की संवेदनशीलता बढ़ती है। श्रील गुरुदेव के अनुसार, “महाप्रभु ने अपने उदाहरण द्वारा दिखाया कि एकादशी वह दिन है जब हम हरिनाम, पवित्र नाम का जप करते हुए अपनी भक्ति और प्रेम को गहरा कर सकते हैं। इस दिन का पालन हमारे हृदय को परिवर्तित करने की शक्ति रखता है।”
एकादशी की शास्त्रों में महिमा
भविष्य पुराण में एकादशी के पालन से मिलने वाले फल को महान बताया गया है:
“सर्व तीर्थेषु यत पुण्यं सर्व यज्ञेषु यत फलम्।
तत् फलं जायते नूनं पर्वणां श्रवणेन च।।”
“सभी तीर्थ स्थलों की यात्रा और सभी यज्ञों के फल को एकादशी का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है।”
इसी प्रकार, स्कंद पुराण में कहा गया है:
“एकादशी व्रतं पुण्यं पापघ्नं सर्वकामदम्।
सर्व तीर्थ फलं तस्य ददाति वृष्णियोत्तम।।”
“एकादशी का व्रत सभी तीर्थों के फल के बराबर है, यह पापों को दूर करता है और सभी इच्छाओं को पूर्ण करता है।”
श्रील गुरुदेव हमें बार-बार यह याद दिलाते थे कि एकादशी केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि एक दिव्य अवसर है: “भगवान ने हमें एकादशी का वरदान दिया है ताकि महीने में दो बार हम अपनी सांसारिक आसक्तियों को रोक सकें और उनकी शाश्वत सेवा को याद कर सकें। यह वह दिन है जब प्रत्येक श्वास और विचार श्रीकृष्ण से भरा होना चाहिए।”
एकादशी के पालन के लाभ
- आध्यात्मिक शुद्धि: उपवास और भक्ति हृदय को शुद्ध करते हैं और भौतिक इच्छाओं को कम करते हैं।
- दिव्य आशीर्वाद: एकादशी का पालन करने से दिव्य कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ऊँचा होता है।
- धर्म के साथ सामंजस्य: एकादशी भक्तों को आध्यात्मिक गतिविधियों पर केंद्रित करने में मदद करता है, जिससे भौतिक चिंताओं से विमुखता बढ़ती है।
एकादशी का पालन कैसे करें
एकादशी के पालन में उपवास का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें पारंपरिक रूप से अन्न का त्याग और कुछ मामलों में पूर्ण उपवास भी शामिल है। यह उपवास विनम्रता और आत्मसमर्पण का प्रतीक है, जो व्यक्ति को परमात्मा के करीब लाता है। इस दिन पवित्र नाम का जप करना, शास्त्रों का अध्ययन और प्रार्थना में समय बिताना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
श्रील गुरुदेव ने सिखाया, “एकादशी का वास्तविक उपवास नकारात्मक विचारों और स्वार्थी इच्छाओं से दूर रहना है। अपनी आत्मा को भक्ति से पोषित करें, क्योंकि भगवान आपके भोजन त्याग से नहीं बल्कि आपके हृदय की पवित्रता से प्रसन्न होते हैं।”
एकादशी का अंतिम लक्ष्य
एकादशी का सच्चे मन से पालन करने से भक्तों में दिव्य प्रेम का जागरण होता है और उनकी कृष्ण के प्रति आसक्ति गहरी होती है। पद्म पुराण में कहा गया है:
“कृष्ण पक्ष तथा शुक्लं तत् पठेच्च द्विजाग्रतः।
तदा क्रीडति गोविन्दे रमते राधया सह।।”
“जो व्यक्ति कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों एकादशियों का पालन करता है, वह गोविंद के साथ राधा के सान्निध्य में खेलता है।”
श्रील गुरुदेव कहते थे, “एकादशी शाश्वत सेवा का द्वार है। इस दिन हम स्वयं को उस सेवा के लिए तैयार करते हैं जहाँ कृष्ण और राधा निवास करते हैं। यह हमारी भक्ति को गहरा करने और भगवान को हृदय में स्वीकार करने का एक पवित्र अवसर है।”
इन साधनाओं के माध्यम से एकादशी दिव्य आनंद का मार्ग बन जाती है, जो प्रत्येक आत्मा को श्रीकृष्ण के चरणों में शाश्वत सेवा के करीब ले जाती है।
श्रील भक्तिबुद्ध बोधायन गोस्वामी महाराज द्वारा 28 अक्टूबर 2024 को हिंदी ज़ूम प्रवचन से संकलित
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