- English
- हिन्दी
- বাংলা
- Deutsch
- Nederlands
- Portuguese
At the time of Srila Visvanatha Cakravarti Thakura, there were some panditās in Vrindavana who opposed him for propagating the worship of the Lord in the mood of paramour (parakīya bhāva). In debate however, Visvanatha defeated them by his deep scholarship and irrefutable logic. On account of this, the envious panditās resolved to kill him. Visvanatha had the habit of rising early in the morning and performing parikrama of Vrindavana. The panditās formulated a plan to kill him at that time in some dense, dark grove. While performing parikrama one day, Visvanatha came to the place where the panditās were hiding. They saw him approaching, and suddenly he was no longer there. Instead, they saw a beautiful young Vrajavāsi girl picking flowers along with two or three of her friends. The astonished panditās inquired from the girl, “Dear child, just a moment ago we saw a devotee approaching here. Did you happen to see him? Where did he go?” The girl replied, “I saw him, but I don’t know where he went.”
Seeing the astounding beauty of the girl, her sidelong glances, graceful feminine manner, and gentle smile, the panditās were captivated. Instantly, all impurity in their minds was vanquished and their hearts were softened. The panditās then requested the girl to introduce herself. She politely replied, “I am a maidservant of Svāmini Srimati Rādhika. She is presently at Her mother-in-law’s house at Yāvata. She sent me here to pick flowers.” Saying this, the girl disappeared, and in her place, they saw Srila Visvanatha Cakravarti Thakura. Horrified at their offense, the panditās fell at his lotus feet and begged for forgiveness. Out of natural compassion, he forgave them.
Adapted from the introduction to Bhakti-rasamrta- sindhu-bindu By Srila Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के समय, वृंदावन में कुछ पंडित थे जो परकीया भाव से भगवद सेवा का प्रचार करने के कारण उनका विरोध करते थे। परन्तु शास्त्रार्थ में, श्रील विश्वनाथ ने अपनी गहन विद्वत्ता और अकाट्य तर्क से उन्हें पराजित कर दिया। इस कारण, ईर्ष्यालु पंडितों ने उन्हें मार डालने का निश्चय कर लिया। श्रील विश्वनाथ का प्रातःकाल उठकर वृंदावन की परिक्रमा करने का नियम था। पंडितों ने उन्हें उसी समय किसी घने, अँधेरे उपवन में मार डालने की योजना बनाई।
एक दिन परिक्रमा करते समय, श्रील विश्वनाथ उस स्थान पर पहुँचे जहाँ पंडित छिपे हुए थे। उन्होंने उन्हें आते देखा, और अचानक वे वहाँ उपस्थित नहीं थे। उनके स्थान पर, उन्होंने एक सुंदर ब्रज बालिका को अपनी दो-तीन सखियों के साथ पुष्प चुनते हुए देखा। आश्चर्यचकित पंडितों ने बालिका से पूछा, “प्यारी बच्ची, अभी कुछ देर पहले हमने एक भक्त को यहाँ आते देखा। क्या तुमने उसे देखा? वह कहाँ गया?” लड़की ने उत्तर दिया, “मैंने उसे देखा, लेकिन मुझे नहीं पता कि वह कहाँ गया।”
लड़की की अद्भुत सुंदरता, उसकी तिरछी निगाहों, कोमल स्त्रैण व्यवहार और मंद मुस्कान देखकर पंडित मोहित हो गए। तुरंत ही, उनके मन की सारी अशुद्धियाँ दूर हो गईं और उनका हृदय द्रवित हो गया। तब पंडितों ने लड़की से अपना परिचय देने का अनुरोध किया। उसने विनम्रता से उत्तर दिया, “मैं स्वामिनी श्रीमती राधिका की दासी हूँ। वह इस समय जावट में अपने ससुराल में हैं। उन्होंने मुझे यहाँ पुष्प चुनने के लिए भेजा है।” यह कहकर, लड़की अदृश्य हो गई, और उसके स्थान पर, उन्होंने श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर को देखा। अपने अपराध पर भयभीत होकर पंडितगण उनके चरणों में गिर पड़े और क्षमा याचना करने लगे। स्वाभाविक करुणा के कारण उन्होंने उन्हें क्षमा कर दिया।”
Source: श्रील भक्तिवेदांत नारायण गोस्वामी महाराज द्वारा संपादित भक्ति-रसामृत-सिंधु-बिंदु के परिचय से उद्धृत
শ্রীল বিশ্বনাথ চক্রবর্তী ঠাকুরের সময়ে, বৃন্দাবনে কিছু পণ্ডিত ছিলেন যারা পরকীয়া ভাব ভগবানের উপাসনা প্রচার করার জন্য শ্রীল বিশ্বনাথ চক্রবর্তী ঠাকুরের বিরোধিতা করেছিলেন। তবে বিতর্কে, বিশ্বনাথ তার গভীর পাণ্ডিত্য এবং অকাট্য যুক্তি দ্বারা তাদের পরাজিত করেছিলেন। এই কারণে, হিংসুক পণ্ডিতরা তাকে হত্যা করার সিদ্ধান্ত নেন। বিশ্বনাথের খুব ভোরে উঠে বৃন্দাবন পরিক্রমা করার অভ্যাস ছিল। পণ্ডিতরা সেই সময় তাকে হত্যা করার পরিকল্পনা করে কিছু ঘন, অন্ধকার খাদে। একদিন পরিক্রমা করার সময়, বিশ্বনাথ সেই জায়গায় আসেন যেখানে পণ্ডিতরা লুকিয়ে ছিলেন। তারা তাকে কাছে আসতে দেখল, এবং হঠাৎ সে আর সেখানে নেই। পরিবর্তে, তারা একটি সুন্দর যুবতী ব্রজভাসি মেয়েকে তার দুই বা তিনজন বন্ধুর সাথে ফুল কুড়াতে দেখেছিল। বিস্মিত পণ্ডিতরা মেয়েটির কাছে জিজ্ঞাসা করলেন, “প্রিয় শিশু, মাত্র কিছুক্ষণ আগে আমরা একজন ভক্তকে এখানে আসতে দেখেছিলাম। তুমি কি তাকে দেখতে পেয়েছ? সে কোথায় গিয়েছিল?” মেয়েটি উত্তর দিল, “আমি তাকে দেখেছি, কিন্তু আমি জানি না সে কোথায় গেছে।”
মেয়েটির বিস্ময়কর সৌন্দর্য, তার পাশের দৃষ্টি, সুন্দর মেয়েলি ভঙ্গি এবং মৃদু হাসি দেখে পণ্ডিতরা বিমোহিত হয়েছিলেন। সঙ্গে সঙ্গে তাদের মনের সমস্ত অপবিত্রতা বিলুপ্ত হয়ে গেল এবং তাদের অন্তর নরম হয়ে গেল। তখন পণ্ডিতরা মেয়েটিকে নিজের পরিচয় দিতে অনুরোধ করলেন। তিনি বিনয়ের সাথে উত্তর দিলেন, “আমি স্বামিনী শ্রীমতি রাধিকার একজন দাসী। তিনি বর্তমানে সময় তার শাশুড়ির বাড়িতে আছেন। তিনি আমাকে এখানে ফুল তুলতে পাঠিয়েছেন।” এই বলে মেয়েটি অদৃশ্য হয়ে গেল এবং তার জায়গায় তারা শ্রীল বিশ্বনাথ চক্রবর্তী ঠাকুরকে দেখতে পেল। তাদের অপরাধে আতঙ্কিত হয়ে পণ্ডিতরা তার পদ্মের পায়ে পড়ে ক্ষমা প্রার্থনা করলেন। স্বাভাবিক করুণার কারণে, তিনি তাদের ক্ষমা করেছিলেন।
শ্রীল ভক্তিবেদান্ত নারায়ণ গোস্বামী মহারাজের ভক্তি-রসামৃত- সিন্ধু-বিন্দুর ভূমিকা থেকে গৃহীত
SRILA VISVANATHA CAKRAVARTI THAKURA STÖßT AUF WIDERSTAND
Zur Zeit von Srila Visvanatha Cakravarti Thakura gab es in Vrindavan einige Pandits, die gegen ihn waren, weil er die Anbetung des Herrn in der Stimmung der Geliebten (parakīya bhāva) predigte. In der Debatte war Visvanatha ihnen jedoch durch seine tiefgründige Gelehrtheit und unwiderlegbare Logik überlegen. Aus diesem Grund beschlossen die neidischen Pandits ihn zu töten. Visvanatha hatte die Angewohnheit, früh am Morgen aufzustehen und den Vrindavan Parikrama durchzuführen. Die Pandits schmiedeten einen Plan, ihn zu dieser Zeit in einem dichten, dunklen Hain zu töten. Während er eines Tages seinen Parikrama durchführte, kam Visvanatha an den Ort, an dem sich die Pandits versteckten. Sie sahen ihn näher kommen, und plötzlich war er nicht mehr da. Stattdessen sahen sie ein schönes junges Vrajavāsi-Mädchen, das mit zwei oder drei ihrer Freundinnen Blumen pflückte. Die erstaunten Pandits fragten das Mädchen: „Liebes Kind, gerade eben sahen wir einen Devotee hierher kommen. Hast du ihn zufällig gesehen? Wo ist er hingegangen?“ Das Mädchen antwortete: „Ich habe ihn gesehen, aber ich weiß nicht, wohin er gegangen ist.“
Als die Pandits die erstaunliche Schönheit des Mädchens, ihre Seitenblicke, ihre anmutige weibliche Art und ihr sanftes Lächeln sahen, waren sie fasziniert. Augenblicklich waren alle Unreinheiten in ihren Gedanken verschwunden und ihre Herzen wurden weich. Dann baten die Pandits das Mädchen, sich vorzustellen. Sie antwortete höflich: „Ich bin eine Dienerin von Svāmini Srimati Rādhika. Sie ist derzeit im Haus ihrer Schwiegermutter in Yāvata. Sie hat mich hierher geschickt, um Blumen zu pflücken.“ Als sie dies sagte, verschwand das Mädchen und an ihrer Stelle sahen sie Srila Visvanatha Cakravarti Thakura. Entsetzt über ihr Vergehen fielen die Pandits vor seine Lotosfüße und baten um Vergebung. Er vergab ihnen aus natürlichem Mitgefühl.
Adaptiert aus der Einleitung zu Bhakti-rasamrta-sindhu-bindu von Srila Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
In de tijd van Srila Visvanatha Cakravarti Thakura waren er enkele panditā’s in Vrindavana die zich tegen hem verzetten omdat hij de aanbidden van de Heer propageerde in de gemoedstoestand van minnaar (parakīya bhāva). In het debat versloeg Visvanatha hen echter door zijn diepgaande kennis en onweerlegbare logica. Om deze reden besloten de jaloerse panditā’s hem te vermoorden. Visvanatha had de gewoonte om ‘s morgens vroeg op te staan en parikrama van Vrindavana uit te voeren. De panditā’s formuleerden een plan om hem op dat moment in een dicht, donker bosje te vermoorden. Terwijl hij op een dag parikrama uitvoerde, kwam Visvanatha naar de plaats waar de panditā’s zich schuilhielden. Ze zagen hem naderen en opeens was hij er niet meer. In plaats daarvan zagen ze een mooi jong Vrajavāsi-meisje bloemen plukken, samen met twee of drie van haar vriendinnen. De verbaasde panditā’s vroegen aan het meisje: ‘Lief kind, zojuist zagen we hier een toegewijde naderen. Heb je hem toevallig gezien? Waar is hij heen gegaan?’ Het meisje antwoordde: ‘Ik heb hem gezien, maar ik weet niet waar hij heen is gegaan.
Toen ze de verbazingwekkende schoonheid van het meisje zagen, haar zijdelingse blikken, sierlijke vrouwelijke manieren en zachte glimlach, waren de pandita’s gefascineerd. Onmiddellijk werd alle onzuiverheid in hun geest overwonnen en werd hun hart verzacht. De panditā’s verzochten het meisje vervolgens om zichzelf voor te stellen. Ze antwoordde beleefd: ‘Ik ben een dienstmeisje van Svāmini Srimati Rādhika. Ze is momenteel in het huis van haar schoonmoeder in Yāvata. Ze heeft me hierheen gestuurd om bloemen te plukken.’ Terwijl ze dit zei, verdween het meisje en in haar plaats zagen ze Srila Visvanatha Cakravarti Thakura. Geschokt door hun overtreding vielen de panditā’s aan zijn lotusvoeten en smeekten om vergeving. Uit natuurlijk mededogen vergaf hij hen.
Overgenomen uit de inleiding tot Bhakti-rasamrta-sindhu-bindu door Srila Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
SRILA VISVANATHA CAKRAVARTI THAKURA ENFRENTA OPOSITORES
Na época de Srila Visvanatha Cakravarti Thakura, havia alguns panditās em Vrindavana que se opunham a ele por propagar a adoração ao Senhor no humor de amante (parakīya bhāva). No entanto, no debate, Visvanatha os derrotou por sua profunda erudição e lógica irrefutável. Assim, os invejosos panditās decidiram matá-lo.
Visvanatha tinha o hábito de acordar cedo pela manhã e realizar o parikrama de Vrindavana. Então, os panditās elaboraram um plano para matá-lo naquela hora, em algum bosque denso e escuro.
Um dia, enquanto realizava Parikrama, Visvanatha chegou ao local onde os panditās estavam escondidos. Eles o viram se aproximando e, de repente, ele já não estava mais lá. Em vez disso, eles viram uma bela jovem Vrajavāsi colhendo flores junto com duas ou três de suas amigas. Os panditās atônitos perguntaram à garota: “Querida criança, há pouco vimos um devoto se aproximando daqui. Você por acaso o viu? Para onde ele foi?” A garota respondeu: “Eu o vi, mas não sei para onde ele foi.”
Vendo a beleza estonteante da garota, seus olhares de soslaio, maneiras femininas graciosas e sorriso gentil, os panditās ficaram cativados. Instantaneamente, toda a impureza em suas mentes foi vencida e seus corações foram amolecidos. Os panditās então pediram que a garota se apresentasse. Ela educadamente respondeu: “Sou uma criada de Svāmini Srimati Rādhika. Ela está atualmente na casa de sua sogra em Yāvata. Ela me enviou aqui para colher flores.” Dizendo isso, a garota desapareceu e, em seu lugar, eles viram Srila Visvanatha Cakravarti Thakura. Horrorizados com a ofensa, os panditās caíram a seus pés de lótus e imploraram por perdão. Por compaixão natural, ele os perdoou.
Adaptado da introdução ao Bhakti-rasamrta-sindhu-bindu Por Srila Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja