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Dear Srila Maharaj,
Today (5th May 2024), upon receiving the news of your physical departure, it feels as though a bright star from the spiritual realm that was shining upon us has disappeared from our view. Today, I am remembering you and how you used to come to my spiritual master, HDG Srila Bhakti Pramode Puri Goswami Thakur, with your queries. I saw in you so much adoration and dedication for your Gurudev and to serve your Gurudev’s mission (ISKCON). This quality of yours continues to inspire me to serve Lord Chaitanya’s mission.
I remember, once, I was in Delhi and somehow you came to know that I was there. You called and invited me to lunch. I arrived alone around noon time and took darshan of Sri Sri Radha Parthasarathy. When you saw me walk alone inside, you asked whether I was greeted by the brahmacaris you sent to receive me. I told you that I walked in alone and they probably did not recognise me. You then took me inside your quarters, and your god brother Purushottaya Swami (Brazil), along with another one of your god brothers, joined us for lunch. Today, I am remembering your simplicity.
One morning, when the holy body of HH Bhakti Swarup Damodar Maharaj (Sripad Maharaj) was moved to Vrindavan in preparation for his samadhi ceremony, you called to discuss the event. Srila Bhakti Charu Maharaj arrived, along with many of Sripad Maharaj’s disciples. We decided that Maharaj’s samadhi will take place in Radha Kunda. ISKCON followers performed the samadhi, and I was given the responsibility of being the principal priest of this event. After the samadhi ceremony was over, you headed back to Vrindavan from Radha Kunda and asked me to join you in your car back to Vrindavan. I did not want to disturb you that day and decided to go with Jivan Mukta prabhu (disciple of Sripad Maharaj) and Bhajadev prabhu.
All these memories of time spent with you are now flooding back to me, and I am feeling a lot of separation. We will not be able to have your physical presence anymore or hear your Harikatha. I humbly pray at your lotus feet to please bestow me your mercy so that I may carry on with Lord Chaitanya’s mission with purity for the rest of my life. Please bless me to chant the Hare Krishna Mahamantra without committing offenses.
You are a Vaishnav, and so I am praying to you, because if you pray then Krishna will fulfil our desire: “Vaishnaveraabedanekrishnadayamoy.”
I am begging for your mercy to serve our guru Parampara wholeheartedly with a non-sectarian mood.
An unworthy servant of Lord Chaitanya’s mission.
B.B.Bodhayan
President of Sri Gopinath Gaudiya Math
5/05/2024
Hindi Translation
प्रिय श्रील महाराज,
आज (5 मई 2024) आपके अप्रकट का समाचार पाकर ऐसा अनुभव हो रहा है मानो आध्यात्मिक जगत का एक चमकता सितारा जो हम पर चमक रहा था वह हमारी दृष्टि से ओझल हो गया है। आज, मैं आपको याद कर रहा हूँ और कैसे आप अपने प्रश्नों को लेकर मेरे आध्यात्मिक गुरु, श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी ठाकुर के पास आते थे। मैंने आपमें अपने गुरुदेव के प्रति और अपने गुरुदेव के मिशन (इस्कॉन) की सेवा के लिए बहुत सारा आदर और समर्पण देखा। आपका यह गुण मुझे भगवान श्रीचैतन्य के मिशन की सेवा करने के लिए प्रेरित करता रहता है।मुझे स्मरण है, एक बार मैं दिल्ली में था और किसी तरह आपको पता चल गया कि मैं वहां था। आपने फोन किया और मुझे दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया। मैं दोपहर के समय अकेला पहुंचा और श्रीश्रीराधा पार्थसारथी के दर्शन किये। जब आपने मुझे अकेले अंदर जाते देखा, तो आपने पूछा कि क्या आपने मुझे लेने के लिए जिन ब्रह्मचारियों को भेजा था, उन्होंने मेरा स्वागत किया। मैंने आपसे कहा था कि मैं अकेला भीतर आया था और उन्होंने शायद मुझे नहीं पहचाना। फिर आप मुझे अपने कक्ष के भीतर ले गए, और आपके गुरु भाई श्रीपुरूषोत्तम स्वामी (ब्राजील), आपके एक अन्य गुरु भाई के साथ, दोपहर के भोजन के लिए हमारे साथ एकत्रित हुए। आज मुझे आपकी सरलता स्मरण आ रही है। एक सुबह, जब परम पूज्य भक्ति स्वरूप दामोदर महाराज (श्रीपाद महाराज) के पवित्र देह को उनके समाधि समारोह की तैयारी के लिए वृन्दावन ले जाया गया, तो आपने इस कार्यक्रम पर चर्चा करने के लिए बुलाया। श्रील भक्ति चारु महाराज, श्रीपाद महाराज के कई शिष्यों के साथ पहुंचे। हमने तय किया कि महाराज की समाधि राधा कुण्ड में होगी। इस्कॉन अनुयायियों ने समाधि दी और मुझे इस आयोजन का मुख्य पुजारी होने की जिम्मेदारी दी गई। समाधि समारोह समाप्त होने के बाद, आप राधा कुण्ड से वापस वृन्दावन चले गए और मुझसे वृन्दावन वापस अपनी कार में आपके साथ चलने के लिए कहा। मैं उस दिन आपको परेशान नहीं करना चाहता था और जीवन मुक्त प्रभु (श्रीपाद महाराज के शिष्य) और श्रीभजदेव प्रभु के साथ जाने का फैसला किया।आपके साथ बिताया समय की ये सभी यादें अब मुझे समरण आ रही हैं, और मैं अत्यंत विरह अनुभव कर रहा हूँ । हम अब आपकी भौतिक उपस्थिति नहीं पा सकेंगे या आपकी हरिकथा नहीं सुन सकेंगे। मैं विनम्रतापूर्वक आपके चरण कमलों में प्रार्थना करता हूँ कि आप कृपया मुझे अपनी दया प्रदान करें ताकि मैं जीवन भर पवित्रता के साथ भगवान श्रीचैतन्य के मिशन को जारी रख सकूं। कृपया मुझे अपराध किए बिना हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करने का आशीर्वाद प्रदान करें। आप एक वैष्णव हैं, और इसलिए मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ, क्योंकि यदि आप प्रार्थना करते हैं तो कृष्ण हमारी इच्छा पूरी करेंगे: “वैष्णवेर आवेदने कृष्ण दयामोय।”मैं सम्प्रदाय निरपेक्ष भाव से हमारी गुरु परंपरा के निकट पूर्ण ह्रदय से सेवा करने के लिए आपकी दया की भिक्षा मांग रहा हूँ।
भगवान श्रीचैतन्य के मिशन का एक अयोग्य सेवक
बी.बी.बोधायनश्री गोपीनाथ गौड़ीय मठ के अध्यक्ष